Tuesday, 24 March 2020

कोरोना का खेल

भूखा में सोया हूं , रातें रोया हूं
इस "कोरोना" के खेल में काम खोया हूं, 
हौसला है मगर , उम्मीद बची है, 
चिड़ियों की जो पेड़ों पर महफ़िल सजी है।

अब तो आसमान भी दिखता है साफ, तारे गिन पाता हूं, 
खुश हूं साहब, भले सूखी रोटी खाता हूं। 

हम ही ने केहर ये खुद पर ढाया है,
और कहते हैं धरती पर मौत का ये साया है।

ना बचा कोई हिन्दू ना मुसलमान, ना सिक्ख ना ईसाई
कमस्कम ये मुसीबत हमें संग तो लाई।

लड़ना है, जूझना है, पार भी पना है
यही तो बस जीवन का ताना बाना है।

Sunday, 8 July 2018

Muflis Musaafir



दिल में ना छिपे हों राज़ तो ज़िन्दगी आसान होती है,
वरना ज़िन्दगी का क्या है, वो तो यूं ही तमाम होती है।
दो पल के मेहमान हैं इस कारवां में, चार लोगों से गुफ्तगू कर जाए
दास्तां कुछ सुनें सबकी कुछ अपनी सुनाई जाए।
मुकम्मल है खुदा गर फितूर से मुहब्बत की जाए,
मिले जो फुरसत खुद से तो यादों की किताब टटोली जाए
जीतेजी नहीं तो मर के किसी के ज़हन में जगह बनाई जाए।
एक खूबसूरत मंज़र, एक तजुर्बा होती है,
वरना उम्र का क्या है, वो तो यूं ही फना होती है।
-@vani



Wednesday, 13 December 2017

Sweet Sin

My lips crave yours,
My body waiting to be discovered by them 
Bit by bit, inch by inch.

With the goosebumps still, 
carve my body with your touch
Mark forever your presence on it
Let your senses be lost in mine.

-@van!

Lost I am in your eyes
Trying to kiss the devil
behind those innocent eyes
They say you are an angel
But your lips say otherwise

I’ll kiss every inch of you 
Your moans be my blessings
You won't need your wings 
I’ll fly you to moon and back
And then let our tongues do the rest

-Harshit

Yey! First colab with him! Many more to come :D

Title courtesy- Advaya Andhare

Saturday, 14 October 2017

Musings of a wild fire



I am not a flame but fire, consuming all the intentions polluted with jealousy and anger.  Enervating them all and setting them "ablaze" with the fury of a wild fire consuming a parched field.. 

Title courtesy- Harshit Mishra 
Picture courtesy- Tanishq Shukla 

Sunday, 1 October 2017

रूखी सासें



इन सूखी रगों में एक जुनून सा दौड़ता था, अब जिसका कोई अस्तित्व नहीं।
उड़ा ले गयी हैं हवाएं मुझे, मेरा कोई ठिकाना नहीं।
चिड़ियों की चहचहाट से होती थी सुबह,
मगर अब किसी का कोई फ़साना तक नहीं।
चल पड़ा हूँ सफर में , न कोई अपना, कोई बेगाना नहीं
देखी हैं ऋतुएं कई, कभी बसंत, कभी बरखा, अब तो पतझड़ का भी अफसाना नहीं।
जूझने दो मुझे अकेले, रास्ते में ऐसे ही किसी को उसके जीवन की याद दिलाऊँ,
कमस कम किसी काम का नहीं तो किसी के फ़ोन में तस्वीर बन कर ही ठहर जाऊं।

Sunday, 16 July 2017

Parable of Verity



It is not too soon to start to dispel the clouds of myth and see the great​ mountain peaks that these clouds hide. As always, the myth has its charms but the truth is far more beautiful..

Saturday, 8 July 2017

The dance of Drops




The golden orb could be seen in the horizon, 
Emanating rays licking the water, painting them yellow and orange. 
The waves longed to be with the sky,
Requesting the sun to take them away with it.

Helios summoned up his might and started pulling up the waves.
Drop by drop, water stretch evaporated. 
Finally, water was with the sky, forming clouds, dancing with the winds, sliding at rainbows. 
But it was now time to leave. 
Clouds grew heavy, condensed and rained down. 
Water united with the land again, for the sake of earth, with a longing to meet the sky...

PC- Manish Dhane