भूखा में सोया हूं , रातें रोया हूं
इस "कोरोना" के खेल में काम खोया हूं,
हौसला है मगर , उम्मीद बची है,
चिड़ियों की जो पेड़ों पर महफ़िल सजी है।
अब तो आसमान भी दिखता है साफ, तारे गिन पाता हूं,
खुश हूं साहब, भले सूखी रोटी खाता हूं।
हम ही ने केहर ये खुद पर ढाया है,
और कहते हैं धरती पर मौत का ये साया है।
ना बचा कोई हिन्दू ना मुसलमान, ना सिक्ख ना ईसाई
कमस्कम ये मुसीबत हमें संग तो लाई।
लड़ना है, जूझना है, पार भी पना है
यही तो बस जीवन का ताना बाना है।