Saturday, 22 October 2016

गुनहगार बिटिया

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
अपने ही समाज से क्यों कर दिया जाता है बेदखल
बिना सूरत देखे ही असल।
कहीं समझा जाता है पवित्रता की मूरत
कहीं तिरस्कार कर दिया जाता है देखते ही सूरत!

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
होती है अपने ही घर में चंद दिनों की मेहमान
सुहाग संग कहा जाता सम्मान।
हर कदम पर मुश्किलें सहती है
लेकिन "रहो अडिग" स्वयं से यह कहती है!

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
अनमोल, अद्वितीय है उसकी मुस्कान।
परंतु कड़वा घूँट पी जाती सह कर अपमान
समझ लेती है औरों की भावनाओं को
मगर क्या कोई समाझ पाया है उसके आंसुओ को??

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
लेकर निकली है फूलों सा कोमल दिल
जिसे समझने वाला कोई जाए उसे मिल।
हज़ारों दुःख दफनाये हैं एक हँसी मुस्कान तले
उसकी इस मुस्कान से न जाने कितने दिल खिले।

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
स्वयं सहेगी दुःख ताकि अपनों पर आंच ना आन पड़े
बावजूद इसके, उसी के अपने उसके विरुद्ध खड़े!
क्या मिलेगी उसे मुक्ति अपनी इस व्यथा से?
कितनी परिपक्वता से कह जाति सबकुछ अपनी कथा से।

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
नाम दे दिया जाता है उसकी इस पीड़ा को "तथाकथित दुःख" का
क्या कभी वह भी निगल पायेगी एक भी निवाला सुख का?
क्या अपनी भावनाएं व्यक्त करने का नहीं है उसे अधिकार?
मत जाने बिना ही दिया जाता है धिक्कार!

क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?
दिखाकर सुन्दर सपने,
धराशायि कर देते हैं उन्हें उसी के अपने।
उड़ान भरने से पहले ही छीन लिए जाते हैं पंख
जन्म से पहले ही सूनी कर दी जाती है जननी की अंक।

उसकी है ही क्या गलती
जो इतना बोझा ढो कर वह चलती।
देवी कहकर सिर आँखों पर बैठाया
फिर उसी को मिट्टी में मिलाया!!..
क्या होना लड़की है कोई गुनाह
क्यों लेनी पड़ती है छिप कर पनाह?


9 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 20 मई 2017 को लिंक की जाएगी ....
    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
    

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  2. सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।

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