दिल में ना छिपे हों राज़ तो ज़िन्दगी आसान होती है,
वरना ज़िन्दगी का क्या है, वो तो यूं ही तमाम होती है।
दो पल के मेहमान हैं इस कारवां में, चार लोगों से गुफ्तगू कर जाए
दास्तां कुछ सुनें सबकी कुछ अपनी सुनाई जाए।
मुकम्मल है खुदा गर फितूर से मुहब्बत की जाए,
मिले जो फुरसत खुद से तो यादों की किताब टटोली जाए
जीतेजी नहीं तो मर के किसी के ज़हन में जगह बनाई जाए।
एक खूबसूरत मंज़र, एक तजुर्बा होती है,
वरना उम्र का क्या है, वो तो यूं ही फना होती है।
-@vani

Bahut khub...aise hi likhte jao...aw aweso...
ReplyDeleteNicely written....
ReplyDeleteThanks :)
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